एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।
वर्तमान युग में श्री हनुमानजी साक्षात् देवों में से एक हैं। बजरंगबली की महिमा अपरमपार है। श्री हनुमानजी की उपासना करने से भक्तों के सभी दुःख-क्लेश दूर रहते हैं और भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति और शत्रुओं की गतिविधियों को स्तंभित करने हेतु बजरंग बाण एक अमोघ प्रयोग है। किसी विकट रोग का संकट हो तब भी उसमें लाभ होता है I बजरंग बाण का नियमित पाठ करते रहने से आत्म-विश्वास में वृद्धि होकर भय दूर होता है।
शनि के प्रकोप से बचने के लिए, घर के सभी अमंगल दूर करने के लिए हनुमान जी की पूजा की जाती है। अगर आप भी अपने जीवन से परेशानियों को दूर करना चाहते हैं तो मंगलवार को हनुमानजी या पंचमुखी हनुमान की पूजा करना शुरू करें।
श्री हनुमान जी की संक्षिप्त पूजा संकल्प लेकर करने के उपरांत अपनी सामर्थ्य अनुसार बजरंग बाण स्तोत्र के नित्य 1,3,5,7,9 या 11 पाठ करें ।
बजरंग बाण व हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमानजी की स्तुति में की थी । तुलसीदास 16वीं शताब्दी में अवधी बोली के महान संत रहे हैं । उन्होंने हनुमान चालीसा को अवधी बोली में ही लिखा है।
श्री हनुमान चालीसा.... श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधार। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चार ।। बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। ऐसा कौन होगा जो हनुमान चालीसा के बारे में न जानता होगा । यह भी एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है ।
इस विषय में दिव्य आत्मन श्री ईशान महेश जी से हनुमान चालीसा की विस्तृत व्याख्या व उसका अर्थ जानने हेतु आगे दिए लिंक पर क्लिक करें I हनुमान चालीसा की भक्तिपूर्ण व्याख्या I
संपूर्ण बजरंग बाण स्तोत्रं
दोहा:
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सन्मान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।
चौपाई:
जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।
जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।
जैसे कूदि सुन्धु के पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाई लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।
बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ।
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर में भई ।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।
जय जय लखन प्राण के दाता । आतुर होय दुख हरहु निपाता ।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारु बज्र की कीले ।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो । महाराज निज दास उबारो ।
सुनि पुकार हुंकार देय धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के । रामदूत धरु मारु जाय के ।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।
पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।।
वन उपवन , मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।
पाँय परों, कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।
बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रति पालक ।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बेताल काल मारी मर ।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ।।
जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।।
चरण पकर कर ज़ोरि मनावौ । यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ।
उठु उठु उठु चलु राम दुहाई । पाँय परों कर ज़ोरि मनाई ।।
ॐ चं चं चं चं चं चपल चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।
ऊँ हं हं हांक देत कपि चंचल । ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल ।।
अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो ।
ताते बिनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुख विपत्ति हमारी।।
परम प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु अब संकट मोरा। हे बजरंग !
बाण सम धावौं। मेटि सकल दुख दरस दिखावौं।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।
जन की लाज जात एहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जय जय हनुमाना। जयति जयति गुन ज्ञान निधाना।
जयति जयति जय जय कपि राई। जयति जयति जय जय सुख दाई।।
जयति जयति जय राम पियारे। जयति जयति जय, सिया दुलारे।
जयति जयति मुद मंगल दाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
एहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लव लेसा।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि सारदा सहित दिन राती। गावत कपि के गुन बहु भाँती।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउँ विधि नाना।।
यह जिय जानि सरन हम आये। ताते विनय करौं मन लाए।।
सुनि कपि आरत बचन हमारे। हरहु सकल दुख सोच हमारे।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै, लहै सुख ढेरी।।
या के पढ़त बीर हनुमाना। धावत बान तुल्य बलवाना।।
मेटत आय दुख छिन माहीं। दै दर्शन रघुपति ढिंग जाहीं।।
डीठ मूठ टोनादिक नासैं। पर कृत यन्त्र मन्त्र नहिं त्रासै।
भैरवादि सुर करैं मिताई। आयसु मानि करैं सेवकाई।।
आवृत ग्यारह प्रति दिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं व्यापै।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपि राज सहाई।
यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्रान की ।।
यह बजरंग बाण जो जापै । ताते भूत प्रेत सब कांपै ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।
दोहा :
उर प्रतीति दृढ सरन हवै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर करै, सब काज सफल हनुमान।
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजे, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
पाठ समाप्ति के बाद महावीर हनुमान जी के स्वरूप का कुछ देर ध्यान करना चाहिये I
नोट : इस विषय में दिव्य आत्मन श्री ईशान महेश जी से बजरंग बाण की विस्तृत व्याख्या व उसका अर्थ जानने हेतु इस लिंक पर क्लिक करें I बजरंग बाण की भक्तिपूर्ण व्याख्या I
भगवान दत्तात्रेय दिव्य त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव के अवतार हैं। दत्त शब्द का अर्थ है "दिया हुआ", दत्त को ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि दिव्य त्रिमूर्ति ने ऋषि युगल गुरु अत्रि और माता अनुसूया को पुत्र के रूप में "दिया" है। वह गुरु अत्रि के पुत्र हैं, इसलिए उनका नाम "अत्रेय" है।
यहाँ मुख्य रूप से भगवान श्री दत्तात्रेय से संबंधित उनके प्रमुख स्तोत्रों का वर्णन किया गया है।
।। ॐ नमो भगवते दत्तात्रेयाय, स्मरणमात्रसन्तुष्टाय,
महाभयनिवारणाय महाज्ञानप्रदाय, चिदानन्दात्मने
बालोन्मत्तपिशाचवेषाय, महायोगिने अवधूताय,
अनसूयानन्दवर्धनाय अत्रिपुत्राय, ॐ भवबन्धविमोचनाय,
आं असाध्यसाधनाय, ह्रीं सर्वविभूतिदाय,
क्रौं असाध्याकर्षणाय, ऐं वाक्प्रदाय, क्लीं जगत्रयवशीकरणाय,
सौः सर्वमनःक्षोभणाय, श्रीं महासम्पत्प्रदाय,
ग्लौं भूमण्डलाधिपत्यप्रदाय, द्रां चिरंजीविने,
वषट्वशीकुरु वशीकुरु, वौषट् आकर्षय आकर्षय,
हुं विद्वेषय विद्वेषय, फट् उच्चाटय उच्चाटय,
ठः ठः स्तम्भय स्तम्भय, खें खें मारय मारय,
नमः सम्पन्नय सम्पन्नय, स्वाहा पोषय पोषय,
परमन्त्रपरयन्त्रपरतन्त्राणि छिन्धि छिन्धि,
ग्रहान्निवारय निवारय, व्याधीन् विनाशय विनाशय,
दुःखं हर हर, दारिद्र्यं विद्रावय विद्रावय,
देहं पोषय पोषय, चित्तं तोषय तोषय,
सर्वमन्त्रस्वरूपाय, सर्वयन्त्रस्वरूपाय,
सर्वतन्त्रस्वरूपाय, सर्वपल्लवस्वरूपाय,
ॐ नमो महासिद्धाय स्वाहा ।।
हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों के अनुसार पुराणानुसार श्री विष्णु भगवान परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को इस जगत का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है।
वैष्णव परंपरा के अनुसार भगवान विष्णु सर्वोच्च सत्ता पर आसीन हैं जो ब्रह्मांड की रचना, रक्षा और परिवर्तन का कारण बनते हैं। लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की समान पूरक शक्ति हैं । वैष्णव मतानुसार, भगवान श्री विष्णु ईश्वर का उच्चतम सगुण रूप है । भगवान विष्णु के अनेक रूप हैं। सामान्यतया , उन्हें उनकी पत्नी लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में जो दूध के समान है तैरते हुए नाग आदिश के ऊपर विश्राम की मुद्रा में दर्शाया जाता है ।
ईश्वर की कृपा प्राप्ति का सबसे सरल और प्रभावी तरीकों में से एक है, भक्ति के साथ श्लोक, स्तोत्र आदि का पाठ करना।
यहाँ मुख्य रूप से भगवान श्री विष्णु से संबंधित उनके प्रमुख स्तोत्रों का वर्णन किया गया है।
विष्णु सहस्रनाम - विष्णु सहस्रनाम ऋषि व्यास के द्वारा रचित कृति है । ऋषि व्यास जी ने अनेक महाकाव्यों की रचना हैं, जिसमें अध्यात्म रामायण, महाभारत, भगवद गीता, पुराण और अन्य स्तोत्र शामिल हैं। विष्णु सहस्रनाम में विष्णु के एक हजार नाम शामिल हैं। चूँकि भगवान विष्णु जगत के पालक है., अत: इनकी उपासना करने से यह रक्षा करते हुए जीवन की पालना करते हैं।
अपने जीवन में अपनी भौतिक-संसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए विष्णु भगवन की किसी न किसी रूप में उपासना करनी चाहिए। भगवान विष्णु की उपासना से व्यक्ति को जीवन में रोजगार द्धारा सहज रूप से धन की प्राप्ति होती रहती है । अत: व्यक्ति अपना तथा अपने परिवार का पालन पोषण सरलता से करने में सक्षम होता है। विष्णु सहस्त्रनाम में भगवान श्री विष्णु के 1000 पवित्र नामों के उचारण से व्यक्ति अनेक प्रकार के दोषों और पाप से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इसके साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ तो होता ही है ।
गजेन्द्र मोक्ष - श्रीमद्भागवत महापुराण के आठवें स्कन्द के दुसरे, तीसरे व् चौथे अध्याय में वर्णित इस स्तोत्र में बताया गया है कि किस प्रकार गजेन्द्र ने अपनी मुक्ति के लिए स्थिर होकर मन ही मन भगवान श्री विष्णु जी की स्तुति की थी । इसका पाठ करने से कलियुग के समस्त पापों का नाशक, दुःख स्वप्न नाशक तथा लौकिक पारमार्थिक महान संकटों और विघ्नों से मुक्त करने वाला है। इसका ब्रह्ममुहूर्त में पाठ करने का अभूतपूर्व लाभ मिलता है। साधक भगवान की अपार कृपा से सदा के लिए जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट जाता है ।
हमारे शास्त्रों में भगवान शिव को त्याग, तपस्या व करुणा की मूर्ति कहा गया है । भगवान शिव भोलेनाथ हैं अत: शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं ।और सहज ही कोई भी मनोवांछित फल दे देते हैं । भगवान शिव सभी के लिए हितकारी व कल्याणकारी हैं ।
त्रिदेवों में उन्हें संहारक देवता के रुप में देखा जाता है । समस्त देवों में भगवान शिव ही ऐसे देवता है जो बहुत सरल पूजा-आराधना से प्रसन्न हो जाते हैं । भगवान शिव का स्वरुप जीवन-मृत्यु का बोध करवाता है । उनके मस्तक पर गंगा और चन्द्रमा जीवन्तता और पवित्रता का प्रतीक हैं । शंकर जी को उंचे पर्वत पर तपस्या में लीन बताते हैं जबकि भगवान शिव ज्योति बिंदु स्वरूप हैं। भगवान शिव अनादि एवं अनंत हैं, यानी उनका ना जन्म हुआ है, ना ही उनकी मृत्यु होटी है ।
भगवान शिव के अनेकों स्तोत्र हैं जैसे, शिव तांडव स्तोत्र, शिव पंचाक्षर स्तोत्र, श्री शिव बिल्वाष्टकम स्तोत्र, लिगाष्टकम, मृतसंजीवन स्तोत्र, वेदसार शिव स्तव आदि ।
यहाँ मुख्य रूप से भगवान शिव से संबंधित उनके प्रमुख स्तोत्रों का वर्णन किया गया है।
शिव तांडव स्तोत्र :-
माता दुर्गा को इस सृष्टि की आद्य शक्ति कहा जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार बताया गया है कि ब्रह्मा जी , भगवान विष्णु और भगवान शिव भी सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करने हेतु देवी शक्ति का प्रयोग करते हैं।
मां दुर्गा हिन्दु धर्म में आस्था रखने वालों की प्रमुख देवी हैं जिन्हें देवी, शक्ति और पार्वती,जग्दम्बा आदि नामों से संबोधन दिया जाता हैं । हिन्दुओं के शक्ति साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही पराशक्ति और सर्वोच्च देवी के रूप में माना जाता है ।
यहाँ मुख्य रूप से देवी दुर्गा से संबंधित उनके प्रमुख स्तोत्रों का वर्णन किया गया है।
श्री दुर्गा सप्तशती - दुर्गा सप्तशती हिन्दू धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ है । इसमें भगवती की कृपा के सुंदर इतिहास के साथ-साथ बड़े-बड़े गूढ़ साधन रहस्य समाविष्ट हैं । साकार उपासना करने वाले साधक इससे अपनी समस्त इछाओं की पूर्ति सहज ही कर सकते है । दूसरी ओर निष्काम भाव से उपासना करने वाले साधक परम दुर्लभ मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं । कवच ,अर्गला , कीलक और तीनों रहस्य - ये ही शप्तशती के छह मुख्य अंग माने गये हैं । दुर्गा सप्तशती का पाठ करने हेतु केवल गीता-प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक से ही पाठ करना चाहिये । अत: वहां से पुस्तक मंगवा कर उसका अच्छी तरह अध्ययन करने के उपरांत ही साधना प्रारंभ करनी चाहिये । गीता-प्रेस गोरखपुर से धार्मिक पुस्तकें मंगवाने हेतु नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें ।
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